देवा से करीब १५ किलोमीटर दूर पतली पगडंडियों और हरे बागों वाले , समतल खेतों में लहलहाती फसलों वाले , लिपे- पुते चिकने मिटटी के बने खपरैल की ढलवां छतों वाले घरों से लदे फंदे एक गावं में मैं आज अलस्सुबह खपरैल खरीदने पहुँच गयी ! !खपरैल की छतों वाले घर की एक बड़ी खूबी यह है कि वे गर्मियों में बेहद ठंठे होते हैं और जाड़ों में उतने ही गुनगुने होते हैं ! मैं खपरैल क़ी यह छत शहर के ताप को कुछ कम करने के लिए एक मिटटी का कमरा बनवाकर उसपर डालना चाहती थी बस यही तलाश मुझे वहाँ ले गयी .... !निचाट गावं में कुम्हारों की कोई कमी नहीं थी पर चूंकि अब लोग सुन्दरता की दृष्टि से सीमेंट के खपरैल इस्तेमाल करने लगे हैं मिटटी के खपरैल पाना एक मुश्किल मुहीम थी ! उस गावं में भटकते हुए मैं एक छोटे से कच्चे घर के सामने जा खडी हुई ...वहाँ एक २०- २२ साल की बहुत आकर्षक युवती मिटटी से अलमुनियम की थालियाँ साफ़ कर रही थी .सांवली छरहरी कमनीय ..मैं उसका सौन्दर्य देखती रह गयी ...बोलीवुड क़ी किसी भी हिरोइन से कम आकर्षण उसमें नहीं था ...सिवाय सहज ग्रामीण लज्जा के जो उसकी खिलती दंतपंक्ति से भी टपक रही थी ..कालिदास क़ी पंक्तियाँ बरबस ही याद आ गयीं ....जो उन्होंने मेघदूत क़ी यक्षिणी के लिए लिखी थी ....तन्वी श्यामा शिखर दशना पक्व बिम्बाधारोष्ठी ...२० -२२ साल क़ी उम्र में उसके तीन बच्चे थे चौथे क़ी संभावना उसने भगवान् पर पर छोड़ रखी थी!. वह वहीँ बैठकर अपने तीन साल के बच्चे को अपने स्तन खोलकर दूध पिलाने लगी तभी मैंने समझ लिया कि चौथे बच्चे के बाद ही इसके सहज सौन्दर्य का रस चला जायेगा और यह २२ से ३२ क़ी हों जाएगी .! पहले उसने अपना नाम मिट्ठू की अम्मा बताया था फिर बहुत पूछने पर.. बहुत लजाते हुए ..कन्याकुमारी बताया !
चौथा बच्चा न करना मैं उसको यह राय देकर चलने को हुई ..तब तक उसका पति भी आ गया जिसने एक दूसरे कुम्हार का पता मुझे दे दिया ....मैं यह सोचती हुई उसका भोला निश्छल रूप अपनी आँखों में लेकर चली आई ... .. कि शुक्र है कि बाज़ार अभी इस गावं तक नहीं आया है लेकिन..और भी तो बहुत कुछ है जो उस गावं तक नहीं पहुंचा है कन्याकुमारी के सौन्दर्य को आत्मचेतना का उजाला कब .. और कैसे मिलेगा ? इंसान तो चाँद पर ज़मीन खरीदने जा रहा है ..अब भी ...धरती पर इतना अँधेरा क्यों है?
चलो कोई तो है जिसे लगता है की अँधेरा है ! कन्या कुमारी का सौन्दर्य ..ग्रामीण बाला का सहज सौन्दर्य है ! मगर कब तक ! आज भी उसे नहीं पता है की दो बच्चे भी काफी हैं ...और वह बुढ़ापे की ओर तेजी से बढ़ रही है ! ये अँधेरा अशिक्षा का अँधेरा है ! अगर हम गाँव में महिलाओं को जागरूक करें तो हमारे गाँव ...सुंदर स्वस्थ और मजबूत होंगे ! गाँव की पुरानी चीजें नष्ट होती जा रहीं है ! जीवन की सहजता नष्ट हो रही है ! इसे हम नहीं बचाएंगे तो फिर कौन !!!
जवाब देंहटाएंइस अछूते और मार्मिक विषय को उठाने के लिए बहुत बहुत बधाई ! अप्रत्यक्ष रूप से तुम्हारा कहना है की जो लोग इस क्षेत्र में काम कर रहें है ,वे ईमानदारी से करें !
शुभ कामनाएं !
ati sawedanshil...
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंwaah..pragya ji.....ur nice
जवाब देंहटाएंBHAWNAO KO SHABDO MEI VYAKT NAHI KARA JA SAKTA.........
जवाब देंहटाएंजिसकी यह सम्वेदना खुद ही प्रज्ञा वान।
जवाब देंहटाएंसुन्दरता ने कर लिया सुन्दरता-पहचान।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
ग्रामीण - जीवन का आपने बहुत ही मार्मिक चित्रण किया है ....
जवाब देंहटाएंदरअसल अब भी भारत के गाँव देश की तथाकथित विकास-यात्रा से अछूते हैं.
कन्याकुमारी की २०-२२ की उम्र और उसके शरीर को उपभोग करने वाले उसके पति को नारी कि स्वतंत्रता और अस्तित्व से क्या मतलब ?
आप २-४ साल बाद जायेंगी तो कन्याकुमारी का व्यक्तित्व कैसा होगा कल्पना करिए......ये इस देश कि विडम्बना ही कहिये ...
ऐसे चरित्रों की भरमार है जिन्हें देख कर मन विचलित होता है बैचैन होता है.
आप-हम जैसे संवेदनशील लिखने के सिवा क्या कर सकते हैं... हाँ लिखना ही कभी उनकी शक्ति बन जाए...
आपको बहुत बहुत badhaai !!
achha socha aur bhale ki baat batayee.in vishyon par likhti rahen.
जवाब देंहटाएंkrishnabihari
आपका अनुभव आपके साहित्य में झलकता है ...आपका चिंतन बहुत गहरा है कुछ प्रशन अनुत्र्रित ही रहते है हमेशा ..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा अति सुन्दर बस इसी तरह लगे रहिये
जवाब देंहटाएंhttp://vangaydinesh.blogspot.com/