दर्द-ए-बयां है ये
आधी नींद से जागने के बाद सो पाना असंभव हों जाता है बल्कि उचटी हुई नींद तभी चैन लेती है जब वह पूरी तरह से जाग ले और सब कुछ व्यवस्थित कर ले क्योंकि नींद कभी बिना वजह नहीं उचटती ! सदियों से आधी नींद सोयी स्त्रियाँ अब उचटी हुई नींद से धीरे धीरे ही सही बाहर आ रही हैं !
यदि पूछा जाए कि दिल्ली में होंने वाले ३१जुलाई के बेशर्म मार्च में क्या आप भी भाग लेने जायेंगे ?
तो क्या जवाब होगा आपका हाँ या नहीं ? आपको मालूम है भी है, ये बेशरम मार्च क्या है?
दिल्ली में ३१ जुलाई को कुछ समय पहले कनाडा में हुए स्लट मार्च की तर्ज़ पर वहाँ की स्त्रियों ने बेशर्म मार्च निकालने का फैसला लिया है जो जंतर मंतर से शुरू होकर ...तक जाएगा ! उसमें भाग लेने वाली लड़कियां व् स्त्रियाँ साड़ी से लेकर शोर्ट्स तक पहन सकतीं हैंया फिर जो भी सामान्य कपडे वे रोज़मर्रा के जीवन में पहनती हैं ! बेशर्म मार्च में किसी तरह का अश्लील या अशिष्ट ड्रेस पहनने का कोई अर्थ बिलकुल नहीं है बल्कि यह मार्च दुखती रग का एक दर्दे बयान है .. .
हुआ यूँ कि कनाडा में किसी लड़की के खुले कपड़ों पर आपत्ति जताते हुए किसी पुलिस वाले ने उसे ढंग से कपडे पहननें की सलाह दे डाली .बिना मांगे राय देना तो वैसे भी गलत होता है ..पुलिसवाले को अपनी अल्प समझ भर स्त्रियों के साथ होने वाली हिंसा से मुक्ति के लिए यह एक साफ़ सुथरा मार्ग लगा होगा अपने काम में समस्या को बढ़ने न देना भी तो समाधान का एक आसान सरल और सर्वसुलभ रास्ता है ! उस कनेडियन पुलिस के एक वाक्य की प्रतिक्रियास्वरूप उस कॉलेज की लड़कियों ने एक स्लट मार्च ही निकाल दिया ! स्लट शब्द का हिंदी अर्थ तो बेशरम, बेहया और उससे भी ज्यादा भयावह वेश्या है ! कहने की ज़रुरत नहीं है जाहिर ही है कि ये सारे शब्द स्त्रियों के लिए प्रयुक्त हुए हैं और होते रहे हैं !
इस तरह स्लट मार्च तीखी अपमानजनक परिस्थितियों के दौर से गुज़र जाने के बाद बर्फ को पिघला देनेवाली प्रतिक्रिया स्वरुप आया हुआ शब्द है!
दिल्ली में जहाँ शिक्षा है, विकास के रास्ते है, भविष्य की संभावनाएं हैं, .. जहाँ लडके और लड़कियां एक स्तर पर सक्रिय सहयोगी हैं, जहाँ लाखों की तादाद में स्त्रियाँ उच्च पदों पर बैठी अपनी बुद्धि- कौशल ,अपने शारीरिक , मानसिक सौन्दर्य अपनी बुद्धिमत्ता और प्रतिभा के जलवे बिखेर रहीं हैं वे खुद को कहीँ भी किसी भी मायने में कमतर साबित नहीं होने दे रहीं हैं वहाँ यानि देश की राजधानी में उनके साथ प्रतिदिन बलात्कार चलती गाड़ियों में उन्हें खींच लेना और तो और गैंग- रेप करना, कभी उनके अश्लील म म स बनाकर ब्लैकमेलिंग के ज़रिये देह -व्यापार में उनको शामिल करना आदि घटनाएं बेहद बेशर्मी के साथ अंजाम दी जाती हैं !
स्त्री की देह से जबर्दस्ती दैहिक रिश्ता कायम करना, उनके कपडे फाड़ देना .. भरी हुई यात्री बस में या औटो रिक्शा में उनके नितम्ब उनके वक्ष और उनकी जाँघों का स्पर्श करते रहना, भीड़ भरी जगहों पर मौका पाकर उनके कान में धीरे से अश्लील शब्द कह देना यह सब आम घटनाएँ हैं जो हर पल स्त्री का अपमान तो करती ही रहतीं हैं उसकी अस्मिता को भी
दो कौड़ी का साबित करती हैं ! यह सब कुछ क्या है? यह तथाकथित अभिजात्य कहा जाने वाला सभ्य समाज, एलीट वर्ग आखिर कितना फूहड़ हों गया है ?
क्या करे स्त्री जिससे कि वह बलात्कार और छेड़छाड़ और अन्य दूसरे प्रकार की हिंसाओं से रौंदी न जाए ! क्या विलुप्त हों जाए या कहीं जाकर छुप जाए ? इन उत्पीड़नों का यह कोई समाधान तो नहीं है परिणामस्वरूप अब लड़कियाँ तीखी प्रतिक्रिया के लिए तैयार हैं . उसी के फलस्वरूप ३१ जुलाई को जंतर मंतर से बेशर्म मार्च निकलेगा . इसकी परिणति क्या होगी कितना सुधरेगा यह समाज क्या सुधरेगा भी? .. यह सब कुछ तो आगे बहस का विषय है पर हाँ औरते एक जुट तो होंगी ही ! वे तो या बँटी हुई या बांटीं हुई हैं! कहीं माँ तो कहीं बेटी कहीं पत्नी तो कहीं प्रेमिका और कहीं बहन बन कर ! वे सिर्फ स्त्री बनकर कब होती हैं?कब उनको अपने स्वतन्त्र अस्तित्व की जांच- पड़ताल का मौका मिलता है! उनकी असुरक्षा और दहशत से भरे अनेकों ऊबड़ खाबड़ लम्बे रास्ते कब ख़त्म होंगे ? समूह में एक शक्ति होती है फिर खुले आम खुद को बेशर्म कह देना भी स्त्री के तथाकथित आकाओं के सिर पर गाज गिरने जैसा ही है ! वे लोग कुछ सोचें जो पबों से और पार्कों से लड़कियों को खींच खींचकर बाहर निकालते हैं और अभद्रता को अपना मौलिक अधिकार मानते हैं जो स्त्रियों के लिए रोबीली नियमावलियां बनाते हैं ! यह बेशर्मी, यह आग बेहद जरूरी हों गई है ! इस बात पर फैज़ का एक शेर है- यही बहुत है के सालिम है दिल का पैराहन ये चाक -चाक गरेबान बेरफू ही सही!
कुछ नहीं तो कम से कम इतना तो हों सकेगा कि नासूरों से निकलकर कुछ दर्द बाहर आयेंगे ! कुछ आहें बयां तो होंगी !
प्रज्ञा पांडे
फूहण और बेशर्म लोग जो पैसों पर इतराते हैं किसी भी मार्च से नहीं बदलेंगे । सदाचार की सीख घर-परिवारों से बचपन से ही देनी होगी तब जाकर सुधार हो सकेगा ।
जवाब देंहटाएंअब भी स्त्रियों को देह से इतर करके नहीं देखा जाता है.. दुर्भाग्यपूर्ण है यह... विश्व भर में ऐसा ही हो रहा है... ऊपर से नीचे तक... इटली के प्रधान मंत्री से आई एम ऍफ़ के मुखिया तक...
जवाब देंहटाएंसुन्दर पोस्ट पढ़ कर अच्छ लगा.
जवाब देंहटाएंकल 03/08/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
आप सब को विजयदशमी पर्व शुभ एवं मंगलमय हो।
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