( kahani ) कछार
पूरा गा ंव इंतज़ार कर रहा था उसमें भी ख़ासतौर पर स्त्रियां।उन्हें र ूपा के ससुराल से वापस भेज दिए जाने का इंतज़ार था। यह दृढ वि श्वास स्त्रियों के मन में रूपा के विवाह के भी सालों पहले से उसके प्रति बना हुआ था कि वि वाह के बाद किसी भी दिन किसी भी दिनरूपा ससुराल से भगा दी जाये गी । पुरुष भी कभी-कभी स्त्रियो ं के तिखरवाने पर हामी भर देते थे या अक्सर उन्हें झिड़क कर य ा अनसुना ही करके घर से निकल जाते थे। वे शायद इस मामले में या रूपा के बारे में उतनी गहर ाई से नहीं सोच पाते थे न ही इत नी जांच पड़ताल करने मेंअपना द िमाग खर्च करते थे । स्त्रिया ं भयवश शायद कुछ अधिक सोचतीं थी या उनके अपने दुःख उन्हें ऐस ा सोचने के लिए बाध्य करते थे, क्या मालूम ! मगर बात की बात मे ं गांव की तेज़-तर्रार लड़कियो ं को धीमी आवाज़ में बोलने वाली स्त्रियां मर्दमार कहा करतीं थ ीं. रूपा केलिए तो यह स्त्रियों का तकियाकलाम ही था - रूपा का विवाह न तय हुआ जैसे कोई बड़ा काण्ड हो ग या .औरतों की महफ़िल सज गयी "अच ्छी भली का तो गुजारा मुश्किल ह ै, इस मर्दमार लड़की का गुज़ारा भ ला ससुराल में होने वाला है?"
दूसरी कहती " ससुराल में साल भर बीत जाए तो बड़ी बात होगी '। तीसरी कहती- " जो किसी से नहीं हारता वह अपन ी संतान से हारता है। देखती नही ं हो राम नरेश की मेहरारू आँख म िला कर बात नहीं करती है " । चौथी कहती -"यहाँ थी तो यहाँ न ाक में दम किया । माँ बाप की नाक कटा के गांव भर में घूमती रही और वहाँ तो बिना सास का घर ही मिल गया है ! सुना सास नह ीं हैं, न ही घर में कोई दूसरी स्त्री है और इसके अंदर स्त्री के कोई गुण मौजूद हैं नहीं। अलबत्ता अवगुण ही भरे हैं "
पांचवी कहती "ससुराल में ये रह पायेगी ? घर को सराय बना देगी! बर्दाश् त करेगा कोई इसे ?घर से निकाल द ेंगें सब।"छठी कहती -"यहाँ तो छुट्टा सां ड थीं वहाँ ये पांव देहरी के ब ाहर भी न निकाल पाएंगी "।सां तवी कहती -" पता नहीं महतारी कै सी थी. वह भी नैहर में ऐसी ही रही होगी तभी तो बेटी को रोक नहीं पायी। वह तो राम नरेश जै सा आदमी था जिसने इसको नाधा, न हीं तो एक तो रूप रंगऔर गढ़न अच् छी ही थी ऊपर से इतना दहेज़ ले कर आयी थी कि किसी की मजाल न ह ोती बोलने की। तभी छठवीं फिर कह देती -" सच पूछो तो राम नरे श भी तो मौगा निकले जो हरदम अ पनी मेहरारू के ही गुन गाते र हते हैं"। सातवीं फिर कहती -"पूरा गांव थ ू थू करता है लेकिन रूपा की माँ के ऊपर कोई असर है कहीं । बे टी कभी किसी लडके के साथ पकड़ी जाती है तो कभी किसी के साथ। गा ंव भर में बात उड़ जाती है और इन को जैसे कुछ मालूम ही नहीं है। बेटी को दुनिया कुछ भी कहे प र महतारी पर कोईअसर ही नहीं हो ता । क्या मजाल जो बेटी पर कभ ी एक थप्पड़ भी उठाया हो। उलट ा ये खा ले, वो खा ले करती रहती है " सबेरे सबेरे दुखंता फुआ क ी चौपाल में यह पंचायत अपनी खुमारी में लहरा रही थी .
औरतें आँ गन में बैठती जा रहीं हैं। औरत ों की इतनी बड़ी संख्या की वजह है नहीं तो सबेरे ही तो सभी ज़रू री काम निपटाने होते हैं जिन्हे ं छोड़कर औरतें यहाँ आ गयीं हैं। बदनाम और बदचलन रूपा को कैसा घर वर मिल रहा है यह देखने आने के लिए यह संख्यावृद्धि हु ई है। हर घर से दो जनी नहीं तो किसी घर से तीन जनी भी। नीरवता में कोई खुसफुसाहट मुखर हो जायेगी इस लिए सबने भी गी-भीगी आँखों के साथ एक बनावटी धैर्य भी ओढ़ रखा है। आज रूपा की विदायी है। ५। ३० का मुहू र्त निकला है। साज सामान तैयार है। दूल्हाआँगन में आने वाला ह ै। रूपा और सिमट गयी है। कई जोड़ा आँखें देखने में लगी हैं कि देखें रूपा में लाज का प् रतिशत कितना है। उनकी निगाहों म ें रूपा की सुंदरता ऊपरी त् वचा भर है। लेकिन चमड़ी से घर नहीं चलता है। विदाई की बेला प ास आती जा रही है। रूपा की मा ँ रोते-रोतेखोइंचा भरा रहीं हैं । दूब , हल्दी, अक्षत ,पैसा पांच बार रूपा के आँचल में डालकर माथे पर टीकते टीकते उमड़ पड़ीं हैं। दूधो नहाओ, पूतो ं फलो का आशीर्वाद देते हुए रू पा को भींच लेतीं हैं। रूपा सच में बहुत सुकुमार है यही सो चती उसके मंगल की कामना करते उन की छाती दरक रहीहै लेकिन अपने घ र लड़की को जाना ही होता है कब त क वे उसको अपने पास रख पाएंगीं। पूरे घर में औरतों के रोने की आवाज़ें भर गयीं हैं। विदाई पर रोना परम्परा है यह बात सारीं औ रतें जानतीं हैं। जो नहीं रोये गा उसको कठकरेजी कह दिया जाएगा , वे यह भी जानती हैं .
दूसरी कहती " ससुराल में साल
पांचवी कहती "ससुराल में ये रह पायेगी ?
औरतें आँ
केकरा रोअला से गंगा नदी बहि गइ लीं, केकरे जिअरा कठोर। आमाजी के रोअला से गंगाजी बहि ग इलीं, भउजी के जिअरा कठोर।
सखिया -सलेहरा से मिली नाहीं पव लीं, डोलिया में देलऽ धकिआय।
सैंया के तलैया हम नित उठ देखली ं, बाबा के तलैया छुटल जाय।
रूपा की भाभी सुलोचना औरतों का रोना-गाना सुनती रो ती हुई रूपा को विदाई के लिए तैयार करने में जुटी है। अब अकेले कैसे कटेंगे इस घर में र ात दिन। सास का बक्सा बंद करती, रोती अपनी ननद-सखी का जाना ब र्दाश्त नहीं कर पा रही है। भा भी से भेंटकर अलग होतेरूपा की र ुलाई तो रोके नहीं रुक रही है । सबसे बढ़कर भाभी ही हो गयी ? ग ांव की औरतों को यह तो बिलकुल न भाया। शहर में पली बढ़ी सुलोचना समझ ही पाती थी कि औरतें भें टते समय गातीं हैं कि रोतीं ह ैं। लेकिन रूपा के मुंह से आवा ज़ भी नहीं निकली है। बस आँखों स े अविरलआंसूं बह रहे हैं उन्ही ं पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है । सुदर्शन मिसिर से देर तक गल े लगी रही रूपा और छोटे भाई के भी। कार खडी है। गहनों , भारी साडी से लदी-फंदी चेहरा ढंके ग ाड़ी में बैठी रूपा आज दूसरे ह ी रूप में है । सारी औरतें अप ने अपने घर की ओर चल दीं। लेकि नदुखंता फुआ की दालान में चौ पाल न लगे तो कैसे खाना पचे ए, भाई ! गांव की नई लड़कियां भी ब दमास हैं पीठ पीछे सुखंता फुआ क हतीं हैं और फुआ के सामने दुखं ता फुआ।दुखंता फुआ बाल विधवा है ं और छोटी उम्र से ही नैहर ही उ नका सब कुछ है। वहीं गुजर बसर है।
"अपने गांव घर का मान रख पाये गी"? अमरावती फुसफुसा ही पड़ीं इसका आदमी तो पहली रात ही इस के सारे कारनामे जान लेगा। आदमि यों को बहुत तजुर्बा होता है। वे खायी खेली लड़की को एक निगाह में जान लेते हैं।"
"निगाह तो क्या बहिन देह कोई पर ाया मर्द जो छुवे भी रहेगा तो आदमी भला वह जान न लेगा " ? पारबता बोलीं - "उनको तो बहुत देह छूने का तजु र्बा न होता है।" सब खिलखिला क र ऐसे हंसने लगीं जैसे सबसे बड़ ा कोई चुटकला हो गया और बहु त मजेदार बात कह दी होपारबती ने ।
"अपने गांव की इज्जत बचा के रखे ं हम लोग कुछ और थोड़े ही चाहते हैं। इस गांव की लड़कियां जहाँ भी गयीं हैं नाम कुनाम नहीं कि या है। भले यहाँ कैसे भी रही ं हों तो क्या। अपने घर जाकर सब सह लिया और निभा लिया है" दुखं ता फुआ बोलीं। लालमणि बोली " इनको जिस दिन उसन े पूरा चूस लिया बस उसी दिन नि काल बाहर करेगा। आखिर आवारागर् दी से बाज़ तो आएंगी नहीं। मा यके वाली वहाँ मौज मिलेगी इनको भला ! जब आदत खराब हो तो कोई ला ख रोकना चाहे रोक नहीं सकता है किसी तरह. सुना कई देवर हैं"।
मालती भी वहीँ आकर बैठ गयी है । औरतों के आधे चेहरे ढके हैं। सबकी बात सुनते मालती चिहुंक उ ठती है - "क्या ? घर बिना सास का है ? और ससुर "? "ससुर तो हैं। लेकिन ससुर क्या दिनभर इनकी रखवाली करेंगे . य े तो उड़ती चिड़ियाँ हैं" खखारती हुई रमोला बोल पड़ीं। दुखंताफुआ फिर बोलीं - "देखो किसी की भी लड़की हो बाकि र अपने घरे-दुआरे सुखी रहे लेकि न हाँ महतारी का करम भी कुछ हो ता है। इनकी महतारी को हम तब स े जान रहे हैं जब से वे डोली से उतरीं। तभी हाथ पैर सब खुले थे ।कोई लाज-लिहाज ही नहीं था । ब स मिसिर की इज्जत खातिरमुंह जरू र ढका रहा। हँसे तो इनको हँसी गांव के पच्छू के ढाल तक सुनाये । तो जब माई ऐसी तो धिया काहे न हो वैसी। उहे जौन कहावत है - जइसन माई वइसन धीया जइसन कां कर वइसन बीया।रूपा की माई को तो अपनी आँख से हमने देखा है अपनी सास के साथ ऐसी बैठी रहतींथीं जैसे कि पतोहू नहीं बेटी हों" ।
आंसू सूखने के बाद औरतें दूसरे रूप में हैं . दुखंता फुआ के घर चाय चढ़ गयी ह ै। सुड सुड चाय पीतीं वे जल्दी घर की ओर निकल लेना चाहतीं हैं । मन बदल गया है। सबेरे सबेरे खूब घूम-घाम हो गयी - अब घर चलें काकी। कह के सुनं दा उठी तो धीरे धीरे सारी औरते ं गम्भीरऔर मंथर चाल से गांव क ी पतली गली के नाली-पड़ोहा बचा तीं अपने-अपने घरों की ओर चल द ीं .
सखिया -सलेहरा से मिली नाहीं पव
सैंया के तलैया हम नित उठ देखली
रूपा की भाभी सुलोचना
"अपने गांव घर का मान रख पाये
"निगाह तो क्या बहिन देह कोई पर
"अपने गांव की इज्जत बचा के रखे
मालती भी वहीँ आकर बैठ गयी है
आंसू सूखने के
एक साल बीत गया और रूपा की ससुराल से कोई शिकायती ख़त भी न आया. यह तो अब उलटा लगने लगा था। इस बीच अलबत्ता यह खबर ज़रूर आ गयी कि रूपा के बेटा हुआ है। जो सोचा वह न हुआ।अब औरतें मा यूस होने लगीं हैं।उनकी पंचायत की लहकघट गयी थी
बेमौसम ही मौसम ठंढा हो गया थ ा।पंचायत के लिए कोई तीखा चटपट ा गर्म मसाला नहीं रहता तो स्त् रियों की दुपहरिया बेरंग हो जा ती है। इस बीच उन्हें काम चला ने के लिए कई चटपटे मसाले मिले । गांव में लड़कियों की कमी कहा ँ है। जब लड़कियों की कमी नहीं तो लड़कों कीक्यों होगी। जब दोनो ं हैं तो गर्मागर्म खबरें भी हो ंगीं ही लेकिन रूपा जैसी लड़की अ पने अंजाम तक नहीं पहुंची यह सव ाल गांव की छाजन में खोंस दिया गया है। समय समय पर सवाल छाजन से उतार कर टटोलने लगतीं हैं और तें ।
रूपा बस एक बार दो दिन के लिए आयी तो खूब खुश और स्वस्थ थी। कुछ मोटी भी हो गयी थी . दो दि नों में ही वापस चली गयी। किसी से मिलने भी न गयी तो गांव की औरतें फुसुर फुसुर कर के रह ग यीं। इतना घमंड हो गया है बेटा जो हुआ है। माँ बेटी के पांव ज मीन परकहाँ हैं। देखती हो न रा म नरेश की मेहरारू कितना हंस हंस सबसे बति याती है , बाप रे, बोली में तो ऐसी चाशनी बहती है कि कौन न भू ल तभी तो राम नरेश भी गुलाम ह ैं। हंसती है तो आँख भी हंसती है उसकी। तब सुरेखा ठमक कर बो ली –
बेमौसम ही मौसम ठंढा हो गया थ
रूपा बस एक बार दो दिन के लिए
" लेकिन जब आँख में पानी नहीं ह ै तो ऐसा हंसना किस काम का "।
रूपा वि दा तो हो गयी आधा रास्ता ख़तम ह ोते होते नैहर भी छूट गया। अब जहाँ जा रही है वहाँ की चिंता स ताने लगी थी रास्ते भर रूपा क ो एक चिंता सताती रही। मर्दों क े घर को सम्भालना बहुत कठिन हो गा ।रह रह कर बगल में बैठे नए स ाथी को भी देख लेती थी।यह फकी रे जैसा नहीं लगता। पता नहीं कै सा होगा।
रूपा वि
कैसे लोग होंगे। बड़के कक् का जैसे गुस्से वाले होंगे या उसके दोस्तों जैसे। उसको अपने सारे सखा याद आने लगे। यहाँ उस के चार देवर हैं लेकिन उसके द ोस्तों जैसे थोड़े होंगे। यही सब सोचती डरती घबराती अम्मा की ह िदायतें याद करती रूपा ने सस ुराल में पांव रखा। पड़ोसकी दे वरानी जिठानी जैसे रिश्तों ने उसको सम्भाला। रूपा को ससुराल के लोग भले लगे। रूपा को कोई क़ैद पसंद कहाँ लेकिन वह बिखरा ह ुआ घर। रूपा ने सब समेटना बटो रना शुरू किया कि एक छिन की भी फुर्सत नहीं मिली। एक सप्ताह के भीतर घर घर हो गया। सुई से लेकरकुदाल तक की जगह तय हो ग यी। महेंद्र पांडे एकदम तृप्त हो गए उन्हें रूपा में बेटी क ा रूप मिलने लगा । घर पहले जै सा हो गया जैसा महेंद्र पांडे की पत्नी के जीते था। रूपा खु द भी हैरान। उसको तो घर के काम करने का शऊर नहीं था। वहाँ अ म्मा माँ की डाँट खाती थी जब शा महोने पर धीरे से घुसती थी तब म ाँ बरसने लगती थी लेकिन तभी पि ता आकर माँ की ऊंची आवाज़ पर अपन ी शांत आवाज़ से ठंढा पानी डाल द ेते थे। " अरे, खेल घूम लेने दो लड़की को। ससुराल जाकर तो नहीं कर पायेगी न यह सब"। " नाक कटा रही है घूम घूम। बैता ल बनी रहती हैदिनभर। तुम क्या जानो।"अम्मा गुस्से में कहती।
गांव की प्रपंची औरतो ं की आस निराशा में बदल गयी। लौ टकर नहीं आयी रूपा। हाँ आयी तो उसकी तारीफ आयी। ससुर आये थे। रूपा ने घर को स्वर्ग बना दि या है । वह रूपा तो है ही आपने लक्ष्मी भी भेजी है। औरतें ह क्का बक्का हैं। लेकिन अब फुआ क ी पंचायत में जोर परहै चर्चा । वे तो हवा के रुख के साथ बहतीं हैं।
अब प्रपंच म ें हवा दूसरी बहने लगी है लेकिन ऐसे जैसे उस लड़की में अवगुण हो ते तो ससुराल में टिकती ? अब और तों में फूट पड़ रही है। तब जो यहाँ वहाँ लड़कों के साथ पकड़ाती थी उसका क्या ?
“सब झूठ था जब हमने नहीं देखा अपनी आँख से तब झूठे न था"। " ए, बहिन तुम्हीं न आयी थी द ौड़ती हुई कि भुसवल में पकड़ायी है"।रमोला और अमरावती के बीच वि वाद हो गया।
"पागल हो ? उसकी अम्मा भी तो वह ीँ थी। किसी ने झूठे जाकर उसकी अम्मा से कह दिया था कि तुम् हारी बेटी भुसवल में फकीरे के स ाथ है। तो इतना सुन के वे पगला गयीं थीं और दौड़ कर भुसवल में गयीं तो रूपा भूसा के ढेर के बीच में धंसी हुई थी । "और फकी रे ?" अमरावती नेपूछा।
"उसकी अम्मा जोर से चिल्लाई कि का कर रही है वहाँ । रूपा ह ंसी और बोली . अम्मा आओ न यहाँ से नीचे गिरने में बहुत मजा आ रहा है ? उसकी अम्मा तो गुस्से में लाल में थी चिल्लायीं फकी रे कहाँ है ? और रूपा अपनी अम् मा को भुकुर भकुर ताकने लगी। फ कीरे तो कब काअपने घर चला गया अ म्मा । हमको दुआर तक छोड़ने आया था। हाँ , उसकी काकी जरूर बुदबु दाईं कि जब देखो तब लड़कों के स ाथ रहती हैं । कहीं सभ्य लड़कि यां लड़कों के बीच में बैठतीं उठ तीं हैं ? आवारा लड़कियों के रंग ढंग हैं ये।" गांव में उड़न े के लिए इतना तो काफी था।जब गा ंव की औरतें उसे घूर घूर कर दे खती तब वह कुछ न समझ पाती और अ म्मा की साड़ी के पीछे छिप कर रूपा भी उन्हें देखने लगती।
ऐसा भी नहीं था। एक दिन फ कीरे ने उसका हाथ पकड़ा था और क हा था- तुम हमें बहुत अच्छी लगत ी हो। तब रूपा ने उसका हाथ ज ोर से झटक कर कहा था -"लेकिन ए ; फकीरे सुन लो ठीक से कि तुम ह मको उतने अच्छे नहीं लगते हो । शान्ति से खेलना है तो खेलो नह ीं तोअपने घर का रास्ता नापो। ज रा भी इधर उधर की सोचोगे तो दा दा से कह के चमड़ी उधवा लेंगे।" बाप रे, फकीरे डर गया। उसने रूपा के ऐसे रूप कि कल्पना भी न हीं की थी फिर भी हिम्मत करके ब ोला - क्या किया रे हमने। हाथ पकड़ लिया तो आफत हो गयी और ज ब कबड्डी मेंतुम्हारी टंगरी प कड़ के खींचते हैं तब? "ऐ, फकीरे। उ खेल है ई जिंदगी है। खबरदार खोपड़ी में एक्को बा ल साबुत नहीं छोड़ेंगे"। फकीरे हकलाने लगा - "अच्छा चल इतनी बड़ी न कर बात । ऐसा क्या कह दिए तुमको । चल ो , माफ़ करो " और रूपा ने जोर की एक धौल फक ीरे की पीठ पर जमायी । "राधे श्याम का क्या हाल किये थ े याद है न। पूरे खेल में लखनी से पताई बना दिए थे" रूप आत्म विश्वास से दिपदिपा रहा था । हँसी रूपा। बात उड़ गयी।
उसके बाद फकीरे रूपा क ा कच्चा नहीं पक्का दोस्त बन गय ा। कोई समस्या आये तो सुलझाने के लिए रूपा है न । बड़ी हिम्मत वाली है किसी से नहीं डरती है। एक दिन बोला "ए रूपा, हमारी ब हन को खेमकरन छेड़ता है"।
"एक कंटाप लगाओ उसको, तुमसे न हो तो हमको बुला लेना " .
"जब जरूरत होगी बुला लेंगे"।
ये सारी बा तें खुली किताब हैं अम्मा के सा मने। बकर-बकर करती निर्झर, नि श्छल अपनी बेटी को अम्मा अच्छी तरह जानतीं हैं । रूपा शाम को घर में घुसती है तो दिनभर की आव ारगी का बखान कर-कर के अम्मा को सुनाना शुरू कर देती है और ए क घंटे के लिए उसकाटेप रिकॉर्डर ऑन हो जाता है . बाबा भी जानते हैं बूझते है ं अपनी बेटी को। दो पुश्तों क े बाद तो जन्मी है रूपा । उसक ी कीमत वे नहीं तो क्या ये जाहि ल गांव वाले जानेंगे। रूपा अपन ी रोज रोज की कहानी अम्मा को स ुनाती थी और उसकी अम्मा परेशान होकर कहतीं थी बिटियाज़रा ढंग स ऊर सीख लो ऐसे नहीं होता है कोई काम "। लेकिन रूपा तो रूपा थी उसको क्यों हो किसी की परवाह !
गांव की औरतें उसको खुले आम मर्दमार कहने लगीं थीं .
रूपा की अम्मा से रूपा के बारे में समाचार आते रहते थे और छन कर गांव की औरतों के बीच पहुँच जाते थे जैसे एक आँगन के चूल् हे का धुंआ दूसरे के आँगन के चूल्हे के धुएं से जा मिलता था कि उसको नैहर आने क ी एक पल की भी फुर्सत नहीं है। यह भी कि उसने अपनी गृहस्थी अच्छी तरह सम्भाल ली है। इसी बीच औरतों के पास फिर एक म सालेदार खबर आ गयी है ।
रूपा अपने देवर का ब्याह कर रह ी है।
"जानती हो लड़की कौन है ? सबने अपनी भौहें ऊंची की - " नहीं तो "
"अरे वही जिसने बीच चौराहे पर विधायक के बेटे को थप्पड़ मारा थ ा।"
"अरे वही मर्द मारन जो अरियात करियात में मशहूर है: वही ?
"उसकी तो फ़ोटो भी अखबार में आयी थी।"
"कैसे पत्रकार लोगों ने घेर लि या था उसको।"
"रूपा को अपनी देवरानी के लिए व ही लड़की मिली ?
"और देवर कैसा है जो तैयार है ऐसी लड़की से ब्याह करने के लिए ?
" देवर को अपनी तेज तर्रार भाभी पसंद है तो वह क्यों न होगी। सुना कि रूपा ने अपने सारे गहन े गिरवी रख दिए थे देवर की पढ़ा यी के लिए"।
"ओह तभी तो एहसान के नीचे दब ग या है बेचारा"।
"तब भी क्या वह मर्द मारन ही म िली थी? भले चाल चलन की अच्छी ल ड़कियां मर गईं हैं क्या ? और को ई लड़की नहीं थी क्या कहीं।"
"लो अब शुरु हुई दूसरी कहानी . अब दो मर्दमारन एक ही घर में रहेंगी ! क्या होगा अब उस घर के मर्दों का ?"
और दुखंता फुआ की पंचायत में बैठी औरतें घूंघट से घूंघट सट ाकर खिस्स खिस्स हंस पड़ीं।
"पागल हो ? उसकी अम्मा भी तो वह
"उसकी अम्मा जोर से चिल्लाई कि
ऐसा भी नहीं था। एक दिन फ
उसके बाद फकीरे रूपा क
"एक कंटाप लगाओ उसको, तुमसे न
"जब जरूरत होगी बुला लेंगे"।
ये सारी बा
गांव की औरतें उसको खुले आम
रूपा की अम्मा से रूपा के बारे
रूपा अपने देवर का ब्याह कर रह
"जानती हो लड़की कौन है ? सबने अपनी भौहें ऊंची की - " नहीं तो "
"अरे वही जिसने बीच चौराहे पर
"अरे वही मर्द मारन जो अरियात
"उसकी तो फ़ोटो भी अखबार में आयी
"कैसे पत्रकार लोगों ने घेर लि
"रूपा को अपनी देवरानी के लिए व
"और देवर कैसा है जो तैयार है
" देवर को अपनी तेज तर्रार भाभी
"ओह तभी तो एहसान के नीचे दब ग
"तब भी क्या वह मर्द मारन ही म
"लो अब शुरु हुई दूसरी कहानी . अब दो मर्दमारन एक ही घर में
और दुखंता फुआ की पंचायत में
जैसे बहुत सी बातों को जानना कठिन होता है उसी तरह उस समय यह जानना मुश्किल था कि इस तरह मिलकर वे सब एक साथ हंस रहीं थीं या एक साथ रो रहीं थीं ।
प्रज्ञा पाण्डेय
9532969797
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तक
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