तस्दीक
भोलानाथ की एक फ़ोटो....व्हाट्सएप्प पर .. वायरल हो गयी थी . ज़िंदगी
भरपूर जीने वाले ललिता राय उर्फ़ बाबू साहब के हाई टेक मोबाइल से क्लिक
होकर वह तस्वीर दस सेकेण्ड के भीतर हंसी के छींटों के साथ एक मोबाइल
सेट से दूसरे मोबाइल सेट पर वायरलेस घूमती उस दिन के मन-रंजन के लिए
पर्याप्त थी.... ..जहाँ भी पहुंचती हंसी छूटने की एक ध्वनि होती ....और
लोग नाम पूछना शुरू करते . “भाई ये है कौन” नाम भी तुरत पहुंचता “अरे,अपने गाँव कअ भोलवा .... उधर से जवाब आता ... “बहुत चूतिया है साला
....”
इधर भोलानाथ को इतना भी याद नहीं कि कब से बाबू साहेब के
यहाँ वे हलवाहा हैं. बाबू साहेब की बीस बिगहा की खेती की गोड़ाईं,बोआयी, निरायी, फसल उगने-पकने से उसके खलिहान में पहुँचने तक में
भोलानाथ कहाँ-कहाँ पिसे-छिपे रहते हैं कि दिखायी नहीं देते हैं ....
कभी-कभी दिखाई देते हैं जब कोई उनको बुलाता है- “ए सांपनाथ ..... कहाँ
रहले हा बे .......तुम सबेरे से देखाई काहें नहीं दिए बे ......” .भोलानाथ
के गहरे धंसे गाल लोटपोट हो हंसने लगते हैं ...... “अरे ए बाबू, नाय
देखे का हम्मे ..... ..सबेरे से तोहरे आँख के आगे त रहलीं ह .....सबेरे से त खेत में कटिया करत रहलीं .हां....”
बाबू साहेब का कोई चमचा ,तब तक खीस निपोरता
चला आता है जो बिना बात ही बीच बचाव करता गाँव में अपनी खड़े होने की
जमीन पुख्ता करता है .. बोल पड़ता .. “अरे नाहीं भय्या .. ई त आज सबेरहीं
से काम में लागल हव्वुए... ! का रे भोजन पानी लिहले .... ?.”
भरपूर जीने वाले ललिता राय उर्फ़ बाबू साहब के हाई टेक मोबाइल से क्लिक
होकर वह तस्वीर दस सेकेण्ड के भीतर हंसी के छींटों के साथ एक मोबाइल
सेट से दूसरे मोबाइल सेट पर वायरलेस घूमती उस दिन के मन-रंजन के लिए
पर्याप्त थी.... ..जहाँ भी पहुंचती हंसी छूटने की एक ध्वनि होती ....और
लोग नाम पूछना शुरू करते . “भाई ये है कौन” नाम भी तुरत पहुंचता “अरे,अपने गाँव कअ भोलवा .... उधर से जवाब आता ... “बहुत चूतिया है साला
....”
इधर भोलानाथ को इतना भी याद नहीं कि कब से बाबू साहेब के
यहाँ वे हलवाहा हैं. बाबू साहेब की बीस बिगहा की खेती की गोड़ाईं,बोआयी, निरायी, फसल उगने-पकने से उसके खलिहान में पहुँचने तक में
भोलानाथ कहाँ-कहाँ पिसे-छिपे रहते हैं कि दिखायी नहीं देते हैं ....
कभी-कभी दिखाई देते हैं जब कोई उनको बुलाता है- “ए सांपनाथ ..... कहाँ
रहले हा बे .......तुम सबेरे से देखाई काहें नहीं दिए बे ......” .भोलानाथ
के गहरे धंसे गाल लोटपोट हो हंसने लगते हैं ...... “अरे ए बाबू, नाय
देखे का हम्मे ..... ..सबेरे से तोहरे आँख के आगे त रहलीं ह .....सबेरे से त खेत में कटिया करत रहलीं .हां....”
बाबू साहेब का कोई चमचा ,तब तक खीस निपोरता
चला आता है जो बिना बात ही बीच बचाव करता गाँव में अपनी खड़े होने की
जमीन पुख्ता करता है .. बोल पड़ता .. “अरे नाहीं भय्या .. ई त आज सबेरहीं
से काम में लागल हव्वुए... ! का रे भोजन पानी लिहले .... ?.”
“.नाहीं बाबू अबहीं कहाँ... सबेरे से त खेतवे में लागल हईं .. दिन खराब
बा. जेतना जल्दी काम होइ जाई ओतने नीक होई .. नाहीं त बड़ी बर्बादी होई ए
बाबू . ..”
बाबू साहेब के दांतों में और उन का पान ढोने वाले सिवरमवा के
दांतों के कत्थयी-कालेपन में कोई फर्क नहीं है .फर्क है तो दोनों के
कुर्तों के रंग-ढंग में ...... बाबू साहेब का झकास है,कपड़े का मटीरियल
भी नफीस है ......उसका कुछ सफेदाह मगर पीला ....
बा. जेतना जल्दी काम होइ जाई ओतने नीक होई .. नाहीं त बड़ी बर्बादी होई ए
बाबू . ..”
बाबू साहेब के दांतों में और उन का पान ढोने वाले सिवरमवा के
दांतों के कत्थयी-कालेपन में कोई फर्क नहीं है .फर्क है तो दोनों के
कुर्तों के रंग-ढंग में ...... बाबू साहेब का झकास है,कपड़े का मटीरियल
भी नफीस है ......उसका कुछ सफेदाह मगर पीला ....
पान का एक बीड़ा बाबू साहेब को तो दूसरा अपने मुंह में चांपते
शिवराम, बाबू साहेब के बगल में खड़े होने के चक्कर में अपनी रीढ़ से इतना
खेल गए हैं कि वह पीछे से भोथरा( बिना धार का ) हंसुआ हो गयी है . पेट और पीठ में जैसे धंसने की होड़ लगी है .. शिवराम भोलानाथ को लुहकारते हैं ...”.भाग सारे,जो पहिले खाइ के आवअ .... मरि जयिहें ससुर ....!”
शिवराम, बाबू साहेब के बगल में खड़े होने के चक्कर में अपनी रीढ़ से इतना
खेल गए हैं कि वह पीछे से भोथरा( बिना धार का ) हंसुआ हो गयी है . पेट और पीठ में जैसे धंसने की होड़ लगी है .. शिवराम भोलानाथ को लुहकारते हैं ...”.भाग सारे,जो पहिले खाइ के आवअ .... मरि जयिहें ससुर ....!”
जात हईं .. बाबू ... ... भोलानाथ गदगदा के खाने चले जाते हैं....
भोलानाथ धरती के घूमने के साथ, रात-दिन होने के साथ, चलते हैं ...अपनी
टुटही खटिया से उठते हैं तब से लेकर अन्धकार आने तक अपने पैरों पर खड़े
रहते हैं और रात जाकर बंसखट पर अपने दोनों पैर लिटा देते हैं .. इसी
हाड़तोड़ दिनचर्या में पांच बच्चे उनकी मेहरारू ने जने हैं.. किसी चीज का
स्वाद नहीं जानतीं हैं लेकिन फिर भी वो चरफर है ....”बाबू हैं न ..
पाँचों पल जइहें . भोलानाथ की मेहरारू यह सुनकर भरोसे के चैन में जीती
हैं ..भोलानाथ मेहरारू से अक्सर बाबू साहेब का बखान करते हैं – “बाबू
अच्छे हैं .इतनी बड़ी जिनगी में कब्बो हाथ नाहीं उठाये हमरे प ..
तोहरी ओर भी आँख उठाके नाइ देखलें .. भौजायी कहे लेन ” ...
भोलानाथ धरती के घूमने के साथ, रात-दिन होने के साथ, चलते हैं ...अपनी
टुटही खटिया से उठते हैं तब से लेकर अन्धकार आने तक अपने पैरों पर खड़े
रहते हैं और रात जाकर बंसखट पर अपने दोनों पैर लिटा देते हैं .. इसी
हाड़तोड़ दिनचर्या में पांच बच्चे उनकी मेहरारू ने जने हैं.. किसी चीज का
स्वाद नहीं जानतीं हैं लेकिन फिर भी वो चरफर है ....”बाबू हैं न ..
पाँचों पल जइहें . भोलानाथ की मेहरारू यह सुनकर भरोसे के चैन में जीती
हैं ..भोलानाथ मेहरारू से अक्सर बाबू साहेब का बखान करते हैं – “बाबू
अच्छे हैं .इतनी बड़ी जिनगी में कब्बो हाथ नाहीं उठाये हमरे प ..
तोहरी ओर भी आँख उठाके नाइ देखलें .. भौजायी कहे लेन ” ...
बाबू साहेब पूछते रहते हैं –“का रे ... कौनो दुःख कष्ट त नाईं बा
.... लरिके फरिके सब ठीक हव्वें न ..” “ हाँ बाबू .. आपके दया से कुल
ठीक बा .. "
"त अब बड़का क उमर दस साल भइल न ! "त ओहके भेज . अब . खेते में . ...."
.... लरिके फरिके सब ठीक हव्वें न ..” “ हाँ बाबू .. आपके दया से कुल
ठीक बा .. "
"त अब बड़का क उमर दस साल भइल न ! "त ओहके भेज . अब . खेते में . ...."
भोलानाथ खीस निपोर देते हैं .... “ए बाबू मलकिनिया कहति है कि लरिकवन के पढाइब "
.....”
.....”
“ ससुर तू पगलाइल हव् का ...? .का करिहें पढ़ि के ...? . घसिये न
छिलिहें ...”
छिलिहें ...”
“ हाँ बाबू अउर का ...”
“तब्ब ...?”
बाबू एक बड़ा सा बौद्धिक प्रश्न भोलानाथ के सामने छोड़ कर चल देते हैं.
.... भोलानाथ बाबू का बहुत सम्मान करते हैं . बाबू कभी उसको गलत राय
नहीं देंगे .. आज वह जी रहा है तो बाबू साहेब ही इसका कारण हैं
....हम जिनगी दे के भी उनके एहसान से उरिन नहीं होंगे ......”
.... भोलानाथ बाबू का बहुत सम्मान करते हैं . बाबू कभी उसको गलत राय
नहीं देंगे .. आज वह जी रहा है तो बाबू साहेब ही इसका कारण हैं
....हम जिनगी दे के भी उनके एहसान से उरिन नहीं होंगे ......”
भोलानाथ की एक ही कमजोरी है – ठर्रा.. ठर्रा दे के जो चाहे काम करा
ले कोई .... बाबू साहेब कभी कभी चिल्लाते हैं .. “ए भोला मरि जइब ससुर
...देखअ कइसन हड़हड़ाइल हव्वे ... हे गिरीस सुनअ.. तनि. इधर सुनअ अ ....इनकर एक-एक ठो
पसली गिन डारा त ... देखा एक्को ढेर त नाइ बा ..” पूरी जमात इस
चुटकुले पर ठहाका मार हंस देती है ......भोलानाथ सबके आकर्षण का केंद्र
बने पसली गिनवा लेते हैं ... “नाइ कक्का ... बारह एह तरफ आउर बारह वह तरफ ”...
ले कोई .... बाबू साहेब कभी कभी चिल्लाते हैं .. “ए भोला मरि जइब ससुर
...देखअ कइसन हड़हड़ाइल हव्वे ... हे गिरीस सुनअ.. तनि. इधर सुनअ अ ....इनकर एक-एक ठो
पसली गिन डारा त ... देखा एक्को ढेर त नाइ बा ..” पूरी जमात इस
चुटकुले पर ठहाका मार हंस देती है ......भोलानाथ सबके आकर्षण का केंद्र
बने पसली गिनवा लेते हैं ... “नाइ कक्का ... बारह एह तरफ आउर बारह वह तरफ ”...
इहो ससुर क नाती गिनती नाइ जानेलें . सब लोग फिर मुस्की मार देते हैं
..भोलानाथ जानते हैं कि ... बाबू हुल्साते हैं तब खुद ही पिलाते
हैं ....वह भी अंग्रेजी ....अंग्रेजी बोतल खोलने में भोलानाथ को जो सुख
मिलता है और अंग्रेजी का जो सुआद मिलता है ....तो उस दिन भोलानाथ ...
मदमस्त होकर सोते हैं ....” ए भोलानाथ ... आज काम बहुत बा......तोहार
अंग्रेजी हमारे पास रक्खल बा ...” भोलानाथ दुगुने जोश में भर उठते हैं और दस आदमी
का काम अकेले करते हैं .......इधर बाबू एक हरकारे को बुलाकर अपनी ब्लैक
डॉग की बोतल मंगाते हैं जिसमे रात की तलछट वाली शराब बची है...".आधा
बोतल पानी भर बे एह में ......” शराब का धोखा देती .बोतल सामने रख गयी
है ..... भोलानाथ को बुलाकर दिखा दी गयी है... भोलानाथ गाँव लांघती,बस्साहट के साथ चारों ओर पसरती नाली की सफायी में लगा दिए गए हैं ..
भोलानाथ अकेले जुटे हैं. सावन भांदों के पहले नाली साफ़ हो जाए नहीं तो
गाँव भर की दुर्गति है..
जेठ के ताप का होश नहीं है उन्हें .अंग्रेजी जो रखी है .. भोलानाथ की पटरा की जन्घियाँ का पटरा-डिजाइन पता नहीं कब का रंग छोड़ चुका है. सूत भी जलिया गया है और उसके बाद जलियाना भी ख़तम होके जांघिया का नाड़ा बचा है और दोनों टांगों को अलग करने वाली मियानी बची है. उनकी कोंनदार हड्डियों वाले चूतड़ों का कपड़ा पूरी तरह उड़ गया है.अंग्रेजी के कारण जोश में आ जाने पर अपनी लज्जा को ढंक रखने वाली,बेरंग फटही लुंगी उन्होंने उतार फेंकी है ... उनके दोनों चूतड हर ओर से
उघडे हैं और वे नाली के ऊपर पूरी तरह से झुके दुनिया की हर मुश्किल से
निफिक्र तल्लीन हैं नाली का सारा कचरा, बदबू, करिया पानी, किचड़ा, मिट्टी
सब उधिया कर निकाल फेंकने में ....वे भूल गए हैं कि उनको भूख-प्यास लगती
है कि उनकी मलकिनी खाना लिए उनको धिक्कारती अगोर रहीं हैं ... ..और तभी
बाबू साहेब टहलते हुए उधर आ जाते हैं . उनका हाई टेक मोबाइल तीन बार
क्लिक होता है . दोनों बार दो एंगिल से और एक बार फ्रंट से ... हँसी
छूटने की जोरदार ध्वनि होती है पर भोलानाथ को होश नहीं है. ...... बाबू
साहेब सबको हँसी पर काबू पाने के लिए हिदायत दे रहे हैं ... “अब्बे देखि
लेई त . .. डिस्टर्ब होइ जाई . पूरा नाली साफ़ होइ जाए द पहिले.........”
हैं ....वह भी अंग्रेजी ....अंग्रेजी बोतल खोलने में भोलानाथ को जो सुख
मिलता है और अंग्रेजी का जो सुआद मिलता है ....तो उस दिन भोलानाथ ...
मदमस्त होकर सोते हैं ....” ए भोलानाथ ... आज काम बहुत बा......तोहार
अंग्रेजी हमारे पास रक्खल बा ...” भोलानाथ दुगुने जोश में भर उठते हैं और दस आदमी
का काम अकेले करते हैं .......इधर बाबू एक हरकारे को बुलाकर अपनी ब्लैक
डॉग की बोतल मंगाते हैं जिसमे रात की तलछट वाली शराब बची है...".आधा
बोतल पानी भर बे एह में ......” शराब का धोखा देती .बोतल सामने रख गयी
है ..... भोलानाथ को बुलाकर दिखा दी गयी है... भोलानाथ गाँव लांघती,बस्साहट के साथ चारों ओर पसरती नाली की सफायी में लगा दिए गए हैं ..
भोलानाथ अकेले जुटे हैं. सावन भांदों के पहले नाली साफ़ हो जाए नहीं तो
गाँव भर की दुर्गति है..
जेठ के ताप का होश नहीं है उन्हें .अंग्रेजी जो रखी है .. भोलानाथ की पटरा की जन्घियाँ का पटरा-डिजाइन पता नहीं कब का रंग छोड़ चुका है. सूत भी जलिया गया है और उसके बाद जलियाना भी ख़तम होके जांघिया का नाड़ा बचा है और दोनों टांगों को अलग करने वाली मियानी बची है. उनकी कोंनदार हड्डियों वाले चूतड़ों का कपड़ा पूरी तरह उड़ गया है.अंग्रेजी के कारण जोश में आ जाने पर अपनी लज्जा को ढंक रखने वाली,बेरंग फटही लुंगी उन्होंने उतार फेंकी है ... उनके दोनों चूतड हर ओर से
उघडे हैं और वे नाली के ऊपर पूरी तरह से झुके दुनिया की हर मुश्किल से
निफिक्र तल्लीन हैं नाली का सारा कचरा, बदबू, करिया पानी, किचड़ा, मिट्टी
सब उधिया कर निकाल फेंकने में ....वे भूल गए हैं कि उनको भूख-प्यास लगती
है कि उनकी मलकिनी खाना लिए उनको धिक्कारती अगोर रहीं हैं ... ..और तभी
बाबू साहेब टहलते हुए उधर आ जाते हैं . उनका हाई टेक मोबाइल तीन बार
क्लिक होता है . दोनों बार दो एंगिल से और एक बार फ्रंट से ... हँसी
छूटने की जोरदार ध्वनि होती है पर भोलानाथ को होश नहीं है. ...... बाबू
साहेब सबको हँसी पर काबू पाने के लिए हिदायत दे रहे हैं ... “अब्बे देखि
लेई त . .. डिस्टर्ब होइ जाई . पूरा नाली साफ़ होइ जाए द पहिले.........”
सब लोग चुप हो गए हैं पर तब तक फ़ोटो.... वायरल हो गयी है ..
व्हाट्स एप्प के कई ग्रुपों में... उधर से हँसी के छूटते फव्वारों की
उछल कूद .. हँसी की गिलहरियाँ के लोटपोट होकर टेढ़े-मेढे होते ...
.आकार हंसी की आवाज़ की जगह पर चले आ रहे हैं ....." ये है कौन ..?.. भोलवा ..... मुंह नाइ देखाई दी त कईसे केहू
चिन्ह पाई .और हवा में लहराते ठहाके ... फ़ोन कॉल्स भी बाबू साहेब के पास आ
रहीं है-“कौन है ई”
व्हाट्स एप्प के कई ग्रुपों में... उधर से हँसी के छूटते फव्वारों की
उछल कूद .. हँसी की गिलहरियाँ के लोटपोट होकर टेढ़े-मेढे होते ...
.आकार हंसी की आवाज़ की जगह पर चले आ रहे हैं ....." ये है कौन ..?.. भोलवा ..... मुंह नाइ देखाई दी त कईसे केहू
चिन्ह पाई .और हवा में लहराते ठहाके ... फ़ोन कॉल्स भी बाबू साहेब के पास आ
रहीं है-“कौन है ई”
.”भोला , आपन भोलवा ..आज भोला को सब लोग जान गए हैं .
शाम हो गयी . भोलानाथ ने हाड़ गला कर नाली साफ़ कर दी .. ... “ए भोलानाथ
.. नहा के अंग्रेजी के नजदीक अयिहा..... बस्सात हवा... मरदे .....”शिवराम बोला ... भोलानाथ नहा धोकर बोतल के पास आये. लेकर चले गए .. पीकर
मस्त सोये .
उनकी तस्वीर .. व्हाट्सएप्प पर घूमती रही .. तीसरे दिन
फिर लौटकर बाबू साहेब के मोबाइल पर फिर चमकी .....बाबू साहेब एंड पार्टी
एक बार फिर हँसी ....”ए .. भोलानाथ ... भोलानाथ .... सुन अ जल्दी .. ......”
.. नहा के अंग्रेजी के नजदीक अयिहा..... बस्सात हवा... मरदे .....”शिवराम बोला ... भोलानाथ नहा धोकर बोतल के पास आये. लेकर चले गए .. पीकर
मस्त सोये .
उनकी तस्वीर .. व्हाट्सएप्प पर घूमती रही .. तीसरे दिन
फिर लौटकर बाबू साहेब के मोबाइल पर फिर चमकी .....बाबू साहेब एंड पार्टी
एक बार फिर हँसी ....”ए .. भोलानाथ ... भोलानाथ .... सुन अ जल्दी .. ......”
भोलानाथ भागते हुए आये .....बाबू साहेब ने अपने मोबाइल का
स्क्रीन भोलानाथ के सामने चमका दिया ...”.ई का हा बाबू .....”
स्क्रीन भोलानाथ के सामने चमका दिया ...”.ई का हा बाबू .....”
“ पहचान ....”
“.नाइ पहिचानत हईं ए बाबू .... “
“आपन चूतर .. नाईं पहिचानत हवा और आपन घंटियो नाइ पहिचानत हवा ? “
सब लोग ठठाकर हंस पड़े .. भोलानाथ एकदम हकबका गए .. मारे लाज के अपनी
हथेलियों से अपना चेहरा ढकने लगे ..” ए बाबू .. ई कइसे भइल .. ए बाबू ..
मिटा द एके ... ए बाबू .....”
हथेलियों से अपना चेहरा ढकने लगे ..” ए बाबू .. ई कइसे भइल .. ए बाबू ..
मिटा द एके ... ए बाबू .....”
“अब का ..ई त दिल्ली भरे क लोग देख लिहलें ....”
भोला नाथ अपना चेहरा छिपाए जमीन में गड़ गए .. “ए बाबू .... आज ले
हमार मेहराऊ हम्मे नंगे नाइ देखलस .. ए बाबू, ए के मिटा द हो . ए.बाबू ..
नाईं बाबू हमार लरिका देखि लीहें त केतना खराब लगी .. का कहिहें .. ए
बाबू . “
हमार मेहराऊ हम्मे नंगे नाइ देखलस .. ए बाबू, ए के मिटा द हो . ए.बाबू ..
नाईं बाबू हमार लरिका देखि लीहें त केतना खराब लगी .. का कहिहें .. ए
बाबू . “
“ बड़का तूं लजाधुर भईल हव्व ...” शिवराम उधर से बोला ..
“ए बाबू सहिये हम बड़अ लजाधुर हईं ..एहके मिटा द हम कब्बो तुहँसे
अंग्रेजी नाईं मांगब ... ए बाबू.. ..”
अंग्रेजी नाईं मांगब ... ए बाबू.. ..”
“.भाग सारे ....भाग ..”
“ नाईं ए बाबू .. हम भगवानो जो आय जयिहें तबो आज इहाँ से नाई जायिब ....एहके
मिटावअ तूं.”
मिटावअ तूं.”
लोग ... भोलानाथ...की हर गिड़गिड़ाहट पर हंस के लोटपोट हो रहे हैं ..
भोलानाथ के ऊपर बेहोशी छाने लगी है ...भोलानाथ उकडू बैठे-बैठे गिर गए हैं
.. बाबू साहेब ने दौड़कर आये देखा तो नाड़ी बंद है .. भोलानाथ .. ए
भोलानाथ...उनके मुंह पर पानी के छींटे दिए गए पर भोलानाथ पर किसी चीज
का कोई असर नहीं हुआ ... ...
भोलानाथ के ऊपर बेहोशी छाने लगी है ...भोलानाथ उकडू बैठे-बैठे गिर गए हैं
.. बाबू साहेब ने दौड़कर आये देखा तो नाड़ी बंद है .. भोलानाथ .. ए
भोलानाथ...उनके मुंह पर पानी के छींटे दिए गए पर भोलानाथ पर किसी चीज
का कोई असर नहीं हुआ ... ...
उस दिन गाँव के सब लोगों को पता चला कि भोलानाथ बहुत लजाधुर थे .
उनकी पत्नी ने रोते-रोते इसकी तस्दीक की .
उनकी पत्नी ने रोते-रोते इसकी तस्दीक की .
अत्यन्त मार्मिक कहानी। जिन्हें गरीब अनपढ़ गँवार कहा जाता है, जो चालक लोगों के द्वारा नित्य शोषित होते है, उनकी लज्जा भी प्रहसन का विषय बन जाती है, जो उनके लिए मृत्युकारक है। हिन्दी में लिखी गयी और बीच बीच में भोजपुरी के संवादों से सँवरी प्रज्ञा पांडेय की यह कहानी हास्यबोध से प्रारंभ हो करुणा के अतल तल में हमें ले जाती है। इसमें शोषित भोलानाथ नहीं समूचा समाज नंगा दिखाई देता है। हार्दिक साधुवाद प्रज्ञा जी आपकी इस बहुत बढ़िया कहानी के लिए। मुझे प्रेमचंद और रेणु याद आ गए।
जवाब देंहटाएंअत्यन्त मार्मिक कहानी। जिन्हें गरीब अनपढ़ गँवार कहा जाता है, जो चालक लोगों के द्वारा नित्य शोषित होते है, उनकी लज्जा भी प्रहसन का विषय बन जाती है, जो उनके लिए मृत्युकारक है। हिन्दी में लिखी गयी और बीच बीच में भोजपुरी के संवादों से सँवरी प्रज्ञा पांडेय की यह कहानी हास्यबोध से प्रारंभ हो करुणा के अतल तल में हमें ले जाती है। इसमें शोषित भोलानाथ नहीं समूचा समाज नंगा दिखाई देता है। हार्दिक साधुवाद प्रज्ञा जी आपकी इस बहुत बढ़िया कहानी के लिए। मुझे प्रेमचंद और रेणु याद आ गए।
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