सोमवार, 21 जून 2010
स्त्री को इस तरह भागना क्यों पड़ता है ?
सन १९८३ की बात है .उसकी उम्र थी २० या हद से हद २१ वर्ष .भरी हुई देहयष्टि और भरपूर आकर्षण की कही कोई कमी नहीं.! उसका नाम बबिता था! दो साल विवाह को हुए थे ! तब मायके में रह रही थी! वह किसी खौफनाक रात के सन्नाटे में अपनी ससुराल से भाग आई थी .यह सब कुछ उसने खुद ही एक दिन बताया था .यूँ तो गौर करने पर उसकी पानीदार आँखें ऐसा ही कुछ बयां भी करती थीं .कई बार उसको उसकी सास के जान से मारने की कोशिशों ने उसे इस कदर खौफ में डाल दिया था कि वह सारी नसीहतें सारी ज़जीरें सारी मर्यादाएं औए सारे संस्कार तहस- नहस कर सिर्फ अपनी जान लेकर भागी थी .एक ऐसे घर से भागना जहाँ के दरवाजों गलियारों से उससे कोई परिचय नहीं था और जहाँ वह पहली बार गयी थी दुस्साहस का काम था ! यदि उसके प्राण उसकी प्रथम प्राथमिकता न होते तो एक नववधू के लिए रात के सन्नाटे में घर के बाहरी दरवाजों की चाभी भाग जाने के लिए सहेजना कोई आसान काम तो नहीं था...उसको आज भी मेरा मन सलाम करता है ..मैं बार बार सोचती हूँ कि स्त्री और पुरुष की इस दुनिया में स्त्री को इस तरह भागना क्यों पड़ता है ?
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प्रज्ञा जी
जवाब देंहटाएंनमस्ते
आपका मेल देखा और आपका ब्लॉग देखा बहुत अच्छा लगा. कृपया इस ब्लॉग में महिलाओं को जागरुक करने और उनके अधिकारों की कैसे रक्षा हो सकती है ... महिलाओं के लिए आवाज बुलंद करने के लिए आपका ब्लॉग महत्वपूर्ण स्तम्भ साबित होगा. आप बहुत अच्छा लिख रही हैं . मुख्य प्रष्ट का कलर सफ़ेद रखें जिसमें पाठक को पढ़ने में आसानी होगी...
आभार
महेंद्र मिश्र
हिंदी ब्लॉग - समयचक्र और निरंतर
bhagna har us vyakti ko padta hai jo kamjor hota hai.stri kai mamlon aur staron par kamjor hai isliye uske saath aisa hota hai.aarthik roop se samarth hokar shayad vah kuch majboot ho sake.
जवाब देंहटाएंkrishnabihari
abudhabi
बधाई प्रज्ञा ! बहुत दिनों से ऐसी जरूरत महसूस की जा रही थी ,जिनमे खोई हुई सुबहें तलाशी जा सकें ! तुमने भी खेत खरिहान ओसारी दुआरे सब देखा ,मैंने भी बँसवारी, कुआँ नदी सब देखा ! जिसकी बात लिखी गई वह इसलिए जिन्दा है क्यों की भाग आई ! मै जिससे मिली वह इसलिए जिन्दा है , क्योंकि रातभर कमर भर पानी में खड़ी रही आत्महत्या न कर सकी !ऐसे लोंगों के जीवन में सुबह नहीं आती ! आज गंगा दशहरा के अवसर पर तुम्हारे भागीरथ प्रयास के लिए शुभ कामनाएं !
जवाब देंहटाएंजीवन में ऐसे बहुत से खोफ़नाक मंज़र आते हैं ... इंसान मजबूर हो जाता है ... बस २ ही रास्ते नज़र आते हैं .. या तो जीवन से हार कर मर जाने की सोचता है ..... या .... साहस की अग्नि प्रज्वलित कर के हिम्मत से सामना करता है समय का ... नमन है ऐसे साहस को जो जीवन की और ले जाता है ....
जवाब देंहटाएंdevi durga us ladaki ko shakti de
जवाब देंहटाएंistari kbhi bhagti nhi..balki tb tk sangharsh karti hai jb tk wo tut nhi jati...nye blog ke liye bdhai....
जवाब देंहटाएंbahut dino ke baad man ko tasali dene wala ek sarthak prayas kiya aapne didi ji bahut accha laga ..................
जवाब देंहटाएंus stri ka bhaagna uski samajhdaari thi... samaaj ko jhakjhorne wale aalekh ka intjaar rahega...
जवाब देंहटाएंस्त्री पर लिखे विचारों के लिए आपको साधुवाद, काश समाज इन बातों पर अमल कर ले :
जवाब देंहटाएं१. स्त्री एक दिन बेटी थी, फिर वोह बहिन बनी,और किसी स्त्री की ननद,
२. वो ही स्त्री एक दिन विवाह के बाद पत्नी, भाबी, जिठानी, देवरानी बनी जिसे एक दिन माँ बनना तय है,
3. लेकिन विडम्बना है उस अबला की की उसे ससुराल में वो प्यार नहीं मिल पाता जो उसे
शादी के तत्काल बाद मिलना चाहिए था कारण कुच्छ भी हो ?
मैं प्रज्ञा जी की रचना का समर्थक हूँ !
मार्मिक स्थिति ... यदि भागती नहीं तो अब तक दूसरे लोक में होती ..
जवाब देंहटाएंभागी तभी जान बचा पाई...जान रहेगी तो संघर्ष भी रहेगा...
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