( kahani ) कछार
पूरा गांव इंतज़ार कर रहा था उसमें भी ख़ासतौर पर स्त्रियां।उन्हें रूपा के ससुराल से वापस भेज दिए जाने का इंतज़ार था। यह दृढ विश्वास स्त्रियों के मन में रूपा के विवाह के भी सालों पहले से उसके प्रति बना हुआ था कि विवाह के बाद किसी भी दिन किसी भी दिनरूपा ससुराल से भगा दी जायेगी । पुरुष भी कभी-कभी स्त्रियों के तिखरवाने पर हामी भर देते थे या अक्सर उन्हें झिड़क कर या अनसुना ही करके घर से निकल जाते थे। वे शायद इस मामले में या रूपा के बारे में उतनी गहराई से नहीं सोच पाते थे न ही इतनी जांच पड़ताल करने मेंअपना दिमाग खर्च करते थे । स्त्रियां भयवश शायद कुछ अधिक सोचतीं थी या उनके अपने दुःख उन्हें ऐसा सोचने के लिए बाध्य करते थे, क्या मालूम ! मगर बात की बात में गांव की तेज़-तर्रार लड़कियों को धीमी आवाज़ में बोलने वाली स्त्रियां मर्दमार कहा करतीं थीं . रूपा केलिए तो यह स्त्रियों का तकियाकलाम ही था - रूपा का विवाह न तय हुआ जैसे कोई बड़ा काण्ड हो गया .औरतों की महफ़िल सज गयी "अच्छी भली का तो गुजारा मुश्किल है , इस मर्दमार लड़की का गुज़ारा भला ससुराल में होने वाला है?"
दूसरी कहती " ससुराल में सालभर बीत जाए तो बड़ी बात होगी '। तीसरी कहती- " जो किसी से नहीं हारता वह अपनी संतान से हारता है। देखती नहीं हो राम नरेश की मेहरारू आँख मिला कर बात नहीं करती है " । चौथी कहती -"यहाँ थी तो यहाँ नाक में दम किया । माँ बाप की नाक कटा के गांव भर में घूमती रही और वहाँ तो बिना सास का घर ही मिल गया है ! सुना सास नहीं हैं, न ही घर में कोई दूसरी स्त्री है और इसके अंदर स्त्री के कोई गुण मौजूद हैं नहीं। अलबत्ता अवगुण ही भरे हैं "
पांचवी कहती "ससुराल में ये रह पायेगी ? घर को सराय बना देगी! बर्दाश्त करेगा कोई इसे ?घर से निकाल देंगें सब।"छठी कहती -"यहाँ तो छुट्टा सांड थीं वहाँ ये पांव देहरी के बाहर भी न निकाल पाएंगी "।सांतवी कहती -" पता नहीं महतारी कैसी थी. वह भी नैहर में ऐसी ही रही होगी तभी तो बेटी को रोक नहीं पायी। वह तो राम नरेश जैसा आदमी था जिसने इसको नाधा, नहीं तो एक तो रूप रंगऔर गढ़न अच्छी ही थी ऊपर से इतना दहेज़ लेकर आयी थी कि किसी की मजाल न होती बोलने की। तभी छठवीं फिर कह देती -" सच पूछो तो राम नरेश भी तो मौगा निकले जो हरदम अपनी मेहरारू के ही गुन गाते रहते हैं"। सातवीं फिर कहती -"पूरा गांव थू थू करता है लेकिन रूपा की माँ के ऊपर कोई असर है कहीं । बेटी कभी किसी लडके के साथ पकड़ी जाती है तो कभी किसी के साथ। गांव भर में बात उड़ जाती है और इनको जैसे कुछ मालूम ही नहीं है। बेटी को दुनिया कुछ भी कहे पर महतारी पर कोईअसर ही नहीं होता । क्या मजाल जो बेटी पर कभी एक थप्पड़ भी उठाया हो। उलटा ये खा ले, वो खा ले करती रहती है " सबेरे सबेरे दुखंता फुआ की चौपाल में यह पंचायत अपनी खुमारी में लहरा रही थी .
औरतें आँगन में बैठती जा रहीं हैं। औरतों की इतनी बड़ी संख्या की वजह है नहीं तो सबेरे ही तो सभी ज़रूरी काम निपटाने होते हैं जिन्हें छोड़कर औरतें यहाँ आ गयीं हैं। बदनाम और बदचलन रूपा को कैसा घर वर मिल रहा है यह देखने आने के लिए यह संख्यावृद्धि हुई है। हर घर से दो जनी नहीं तो किसी घर से तीन जनी भी। नीरवता में कोई खुसफुसाहट मुखर हो जायेगी इस लिए सबने भीगी -भीगी आँखों के साथ एक बनावटी धैर्य भी ओढ़ रखा है। आज रूपा की विदायी है। ५। ३० का मुहूर्त निकला है। साज सामान तैयार है। दूल्हाआँगन में आने वाला है। रूपा और सिमट गयी है। कई जोड़ा आँखें देखने में लगी हैं कि देखें रूपा में लाज का प्रतिशत कितना है। उनकी निगाहों में रूपा की सुंदरता ऊपरी त्वचा भर है। लेकिन चमड़ी से घर नहीं चलता है। विदाई की बेला पास आती जा रही है। रूपा की माँ रोते-रोतेखोइंचा भरा रहीं हैं। दूब , हल्दी, अक्षत ,पैसा पांच बार रूपा के आँचल में डालकर माथे पर टीकते टीकते उमड़ पड़ीं हैं। दूधो नहाओ, पूतों फलो का आशीर्वाद देते हुए रूपा को भींच लेतीं हैं। रूपा सच में बहुत सुकुमार है यही सोचती उसके मंगल की कामना करते उनकी छाती दरक रहीहै लेकिन अपने घर लड़की को जाना ही होता है कब तक वे उसको अपने पास रख पाएंगीं। पूरे घर में औरतों के रोने की आवाज़ें भर गयीं हैं। विदाई पर रोना परम्परा है यह बात सारीं औरतें जानतीं हैं। जो नहीं रोयेगा उसको कठकरेजी कह दिया जाएगा , वे यह भी जानती हैं .
दूसरी कहती " ससुराल में साल
पांचवी कहती "ससुराल में ये रह पायेगी ?
औरतें आँ
केकरा रोअला से गंगा नदी बहि गइलीं , केकरे जिअरा कठोर। आमाजी के रोअला से गंगाजी बहि गइलीं , भउजी के जिअरा कठोर।
सखिया -सलेहरा से मिली नाहीं पवलीं , डोलिया में देलऽ धकिआय।
सैंया के तलैया हम नित उठ देखलीं , बाबा के तलैया छुटल जाय।
रूपा की भाभी सुलोचना औरतों का रोना-गाना सुनती रोती हुई रूपा को विदाई के लिए तैयार करने में जुटी है। अब अकेले कैसे कटेंगे इस घर में रात दिन। सास का बक्सा बंद करती, रोती अपनी ननद-सखी का जाना बर्दाश्त नहीं कर पा रही है। भाभी से भेंटकर अलग होतेरूपा की रुलाई तो रोके नहीं रुक रही है । सबसे बढ़कर भाभी ही हो गयी ? गांव की औरतों को यह तो बिलकुल न भाया। शहर में पली बढ़ी सुलोचना समझ ही पाती थी कि औरतें भेंटते समय गातीं हैं कि रोतीं हैं। लेकिन रूपा के मुंह से आवाज़ भी नहीं निकली है। बस आँखों से अविरलआंसूं बह रहे हैं उन्हीं पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है। सुदर्शन मिसिर से देर तक गले लगी रही रूपा और छोटे भाई के भी। कार खडी है। गहनों , भारी साडी से लदी-फंदी चेहरा ढंके गाड़ी में बैठी रूपा आज दूसरे ही रूप में है । सारी औरतें अपने अपने घर की ओर चल दीं। लेकिन दुखंता फुआ की दालान में चौपाल न लगे तो कैसे खाना पचे ए, भाई ! गांव की नई लड़कियां भी बदमास हैं पीठ पीछे सुखंता फुआ कहतीं हैं और फुआ के सामने दुखंता फुआ।दुखंता फुआ बाल विधवा हैं और छोटी उम्र से ही नैहर ही उनका सब कुछ है। वहीं गुजर बसर है।
"अपने गांव घर का मान रख पायेगी "? अमरावती फुसफुसा ही पड़ीं इसका आदमी तो पहली रात ही इसके सारे कारनामे जान लेगा। आदमियों को बहुत तजुर्बा होता है। वे खायी खेली लड़की को एक निगाह में जान लेते हैं।"
"निगाह तो क्या बहिन देह कोई पराया मर्द जो छुवे भी रहेगा तो आदमी भला वह जान न लेगा " ? पारबता बोलीं - "उनको तो बहुत देह छूने का तजुर्बा न होता है।" सब खिलखिला कर ऐसे हंसने लगीं जैसे सबसे बड़ा कोई चुटकला हो गया और बहुत मजेदार बात कह दी होपारबती ने।
"अपने गांव की इज्जत बचा के रखें हम लोग कुछ और थोड़े ही चाहते हैं। इस गांव की लड़कियां जहाँ भी गयीं हैं नाम कुनाम नहीं किया है। भले यहाँ कैसे भी रहीं हों तो क्या। अपने घर जाकर सब सह लिया और निभा लिया है" दुखंता फुआ बोलीं। लालमणि बोली " इनको जिस दिन उसने पूरा चूस लिया बस उसी दिन निकाल बाहर करेगा। आखिर आवारागर्दी से बाज़ तो आएंगी नहीं। मायके वाली वहाँ मौज मिलेगी इनको भला ! जब आदत खराब हो तो कोई लाख रोकना चाहे रोक नहीं सकता है किसी तरह. सुना कई देवर हैं"।
मालती भी वहीँ आकर बैठ गयी है। औरतों के आधे चेहरे ढके हैं। सबकी बात सुनते मालती चिहुंक उठती है - "क्या ? घर बिना सास का है ? और ससुर "? "ससुर तो हैं। लेकिन ससुर क्या दिनभर इनकी रखवाली करेंगे . ये तो उड़ती चिड़ियाँ हैं" खखारती हुई रमोला बोल पड़ीं। दुखंताफुआ फिर बोलीं - "देखो किसी की भी लड़की हो बाकिर अपने घरे-दुआरे सुखी रहे लेकिन हाँ महतारी का करम भी कुछ होता है। इनकी महतारी को हम तब से जान रहे हैं जब से वे डोली से उतरीं। तभी हाथ पैर सब खुले थे ।कोई लाज-लिहाज ही नहीं था । बस मिसिर की इज्जत खातिरमुंह जरूर ढका रहा। हँसे तो इनको हँसी गांव के पच्छू के ढाल तक सुनाये। तो जब माई ऐसी तो धिया काहे न हो वैसी। उहे जौन कहावत है - जइसन माई वइसन धीया जइसन कांकर वइसन बीया।रूपा की माई को तो अपनी आँख से हमने देखा है अपनी सास के साथ ऐसी बैठी रहतींथीं जैसे कि पतोहू नहीं बेटी हों"।
आंसू सूखने केबाद औरतें दूसरे रूप में हैं . दुखंता फुआ के घर चाय चढ़ गयी है। सुड सुड चाय पीतीं वे जल्दी घर की ओर निकल लेना चाहतीं हैं। मन बदल गया है। सबेरे सबेरे खूब घूम-घाम हो गयी - अब घर चलें काकी। कह के सुनंदा उठी तो धीरे धीरे सारी औरतें गम्भीरऔर मंथर चाल से गांव की पतली गली के नाली-पड़ोहा बचातीं अपने-अपने घरों की ओर चल दीं .
सखिया -सलेहरा से मिली नाहीं पव
सैंया के तलैया हम नित उठ देखली
"अपने गांव घर का मान रख पाये
"निगाह तो क्या बहिन देह कोई पर
"अपने गांव की इज्जत बचा के रखे
मालती भी वहीँ आकर बैठ गयी है
आंसू सूखने के
एक साल बीत गया और रूपा की ससुराल से कोई शिकायती ख़त भी न आया. यह तो अब उलटा लगने लगा था। इस बीच अलबत्ता यह खबर ज़रूर आ गयी कि रूपा के बेटा हुआ है। जो सोचा वह न हुआ।अब औरतें मायूस होने लगीं हैं।उनकी पंचायत की लहकघट गयी थी
बेमौसम ही मौसम ठंढा हो गया था।पंचायत के लिए कोई तीखा चटपटा गर्म मसाला नहीं रहता तो स्त्रियों की दुपहरिया बेरंग हो जाती है। इस बीच उन्हें काम चलाने के लिए कई चटपटे मसाले मिले। गांव में लड़कियों की कमी कहाँ है। जब लड़कियों की कमी नहीं तो लड़कों कीक्यों होगी। जब दोनों हैं तो गर्मागर्म खबरें भी होंगीं ही लेकिन रूपा जैसी लड़की अपने अंजाम तक नहीं पहुंची यह सवाल गांव की छाजन में खोंस दिया गया है। समय समय पर सवाल छाजन से उतार कर टटोलने लगतीं हैं औरतें ।
रूपा बस एक बार दो दिन के लिएआयी तो खूब खुश और स्वस्थ थी। कुछ मोटी भी हो गयी थी . दो दिनों में ही वापस चली गयी। किसी से मिलने भी न गयी तो गांव की औरतें फुसुर फुसुर कर के रह गयीं। इतना घमंड हो गया है बेटा जो हुआ है। माँ बेटी के पांव जमीन परकहाँ हैं। देखती हो न राम नरेश की मेहरारू कितना हंस हंस सबसे बतियाती है , बाप रे, बोली में तो ऐसी चाशनी बहती है कि कौन न भूल तभी तो राम नरेश भी गुलाम हैं। हंसती है तो आँख भी हंसती है उसकी। तब सुरेखा ठमक कर बोली –
बेमौसम ही मौसम ठंढा हो गया थ
रूपा बस एक बार दो दिन के लिए
" लेकिन जब आँख में पानी नहीं है तो ऐसा हंसना किस काम का "।
रूपा विदा तो हो गयी आधा रास्ता ख़तम होते होते नैहर भी छूट गया। अब जहाँ जा रही है वहाँ की चिंता सताने लगी थी रास्ते भर रूपा को एक चिंता सताती रही। मर्दों के घर को सम्भालना बहुत कठिन होगा ।रह रह कर बगल में बैठे नए साथी को भी देख लेती थी।यह फकीरे जैसा नहीं लगता। पता नहीं कैसा होगा।
रूपा वि
कैसे लोग होंगे। बड़के कक्का जैसे गुस्से वाले होंगे या उसके दोस्तों जैसे। उसको अपने सारे सखा याद आने लगे। यहाँ उसके चार देवर हैं लेकिन उसके दोस्तों जैसे थोड़े होंगे। यही सब सोचती डरती घबराती अम्मा की हिदायतें याद करती रूपा ने ससुराल में पांव रखा। पड़ोसकी देवरानी जिठानी जैसे रिश्तों ने उसको सम्भाला। रूपा को ससुराल के लोग भले लगे। रूपा को कोई क़ैद पसंद कहाँ लेकिन वह बिखरा हुआ घर। रूपा ने सब समेटना बटोरना शुरू किया कि एक छिन की भी फुर्सत नहीं मिली। एक सप्ताह के भीतर घर घर हो गया। सुई से लेकरकुदाल तक की जगह तय हो गयी। महेंद्र पांडे एकदम तृप्त हो गए उन्हें रूपा में बेटी का रूप मिलने लगा । घर पहले जैसा हो गया जैसा महेंद्र पांडे की पत्नी के जीते था। रूपा खुद भी हैरान। उसको तो घर के काम करने का शऊर नहीं था। वहाँ अम्मा माँ की डाँट खाती थी जब शाम होने पर धीरे से घुसती थी तब माँ बरसने लगती थी लेकिन तभी पिता आकर माँ की ऊंची आवाज़ पर अपनी शांत आवाज़ से ठंढा पानी डाल देते थे। " अरे, खेल घूम लेने दो लड़की को। ससुराल जाकर तो नहीं कर पायेगी न यह सब"। " नाक कटा रही है घूम घूम। बैताल बनी रहती हैदिनभर। तुम क्या जानो। "अम्मा गुस्से में कहती।
गांव की प्रपंची औरतों की आस निराशा में बदल गयी। लौटकर नहीं आयी रूपा। हाँ आयी तो उसकी तारीफ आयी। ससुर आये थे। रूपा ने घर को स्वर्ग बना दिया है । वह रूपा तो है ही आपने लक्ष्मी भी भेजी है। औरतें हक्का बक्का हैं। लेकिन अब फुआ की पंचायत में जोर परहै चर्चा । वे तो हवा के रुख के साथ बहतीं हैं।
अब प्रपंच में हवा दूसरी बहने लगी है लेकिन ऐसे जैसे उस लड़की में अवगुण होते तो ससुराल में टिकती ? अब औरतों में फूट पड़ रही है। तब जो यहाँ वहाँ लड़कों के साथ पकड़ाती थी उसका क्या ?
“सब झूठ था जब हमने नहीं देखा अपनी आँख से तब झूठे न था"। " ए, बहिन तुम्हीं न आयी थी दौड़ती हुई कि भुसवल में पकड़ायी है "।रमोला और अमरावती के बीच विवाद हो गया।
"पागल हो ? उसकी अम्मा भी तो वहीँ थी। किसी ने झूठे जाकर उसकी अम्मा से कह दिया था कि तुम्हारी बेटी भुसवल में फकीरे के साथ है। तो इतना सुन के वे पगला गयीं थीं और दौड़ कर भुसवल में गयीं तो रूपा भूसा के ढेर के बीच में धंसी हुई थी । "और फकीरे ?" अमरावती नेपूछा।
"उसकी अम्मा जोर से चिल्लाई कि का कर रही है वहाँ । रूपा हंसी और बोली . अम्मा आओ न यहाँ से नीचे गिरने में बहुत मजा आ रहा है ? उसकी अम्मा तो गुस्से में लाल में थी चिल्लायीं फकीरे कहाँ है ? और रूपा अपनी अम्मा को भुकुर भकुर ताकने लगी। फकीरे तो कब काअपने घर चला गया अम्मा । हमको दुआर तक छोड़ने आया था। हाँ , उसकी काकी जरूर बुदबुदाईं कि जब देखो तब लड़कों के साथ रहती हैं । कहीं सभ्य लड़कियां लड़कों के बीच में बैठतीं उठतीं हैं ? आवारा लड़कियों के रंग ढंग हैं ये।" गांव में उड़ने के लिए इतना तो काफी था।जब गांव की औरतें उसे घूर घूर कर देखती तब वह कुछ न समझ पाती और अम्मा की साड़ी के पीछे छिप कर रूपा भी उन्हें देखने लगती।
ऐसा भी नहीं था। एक दिन फकीरे ने उसका हाथ पकड़ा था और कहा था- तुम हमें बहुत अच्छी लगती हो। तब रूपा ने उसका हाथ जोर से झटक कर कहा था -"लेकिन ए ; फकीरे सुन लो ठीक से कि तुम हमको उतने अच्छे नहीं लगते हो । शान्ति से खेलना है तो खेलो नहीं तोअपने घर का रास्ता नापो। जरा भी इधर उधर की सोचोगे तो दादा से कह के चमड़ी उधवा लेंगे।" बाप रे, फकीरे डर गया। उसने रूपा के ऐसे रूप कि कल्पना भी नहीं की थी फिर भी हिम्मत करके बोला - क्या किया रे हमने। हाथ पकड़ लिया तो आफत हो गयी और जब कबड्डी मेंतुम्हारी टंगरी पकड़ के खींचते हैं तब? "ऐ, फकीरे। उ खेल है ई जिंदगी है। खबरदार खोपड़ी में एक्को बाल साबुत नहीं छोड़ेंगे"। फकीरे हकलाने लगा - "अच्छा चल इतनी बड़ी न कर बात । ऐसा क्या कह दिए तुमको । चलो , माफ़ करो " और रूपा ने जोर की एक धौल फकीरे की पीठ पर जमायी । "राधे श्याम का क्या हाल किये थे याद है न। पूरे खेल में लखनी से पताई बना दिए थे" रूप आत्म विश्वास से दिपदिपा रहा था। हँसी रूपा। बात उड़ गयी।
उसके बाद फकीरे रूपा का कच्चा नहीं पक्का दोस्त बन गया। कोई समस्या आये तो सुलझाने के लिए रूपा है न । बड़ी हिम्मत वाली है किसी से नहीं डरती है। एक दिन बोला "ए रूपा, हमारी बहन को खेमकरन छेड़ता है"।
"एक कंटाप लगाओ उसको, तुमसे नहो तो हमको बुला लेना " .
"जब जरूरत होगी बुला लेंगे"।
ये सारी बातें खुली किताब हैं अम्मा के सामने। बकर-बकर करती निर्झर, निश्छल अपनी बेटी को अम्मा अच्छी तरह जानतीं हैं । रूपा शाम को घर में घुसती है तो दिनभर की आवारगी का बखान कर-कर के अम्मा को सुनाना शुरू कर देती है और एक घंटे के लिए उसकाटेप रिकॉर्डर ऑन हो जाता है . बाबा भी जानते हैं बूझते हैं अपनी बेटी को। दो पुश्तों के बाद तो जन्मी है रूपा । उसकी कीमत वे नहीं तो क्या ये जाहिल गांव वाले जानेंगे। रूपा अपनी रोज रोज की कहानी अम्मा को सुनाती थी और उसकी अम्मा परेशान होकर कहतीं थी बिटियाज़रा ढंग सऊर सीख लो ऐसे नहीं होता है कोई काम "। लेकिन रूपा तो रूपा थी उसको क्यों हो किसी की परवाह !
गांव की औरतें उसको खुले आम मर्दमार कहने लगीं थीं .
रूपा की अम्मा से रूपा के बारे में समाचार आते रहते थे और छनकर गांव की औरतों के बीच पहुँच जाते थे जैसे एक आँगन के चूल्हे का धुंआ दूसरे के आँगन के चूल्हे के धुएं से जा मिलता था कि उसको नैहर आने की एक पल की भी फुर्सत नहीं है। यह भी कि उसने अपनी गृहस्थी अच्छी तरह सम्भाल ली है। इसी बीच औरतों के पास फिर एक मसालेदार खबर आ गयी है ।
रूपा अपने देवर का ब्याह कर रही है।
"जानती हो लड़की कौन है ? सबने अपनी भौहें ऊंची की - " नहीं तो "
"अरे वही जिसने बीच चौराहे परविधायक के बेटे को थप्पड़ मारा था। "
"अरे वही मर्द मारन जो अरियात करियात में मशहूर है: वही ?
"उसकी तो फ़ोटो भी अखबार में आयी थी।"
"कैसे पत्रकार लोगों ने घेर लिया था उसको।"
"रूपा को अपनी देवरानी के लिए वही लड़की मिली ?
"और देवर कैसा है जो तैयार है ऐसी लड़की से ब्याह करने के लिए ?
" देवर को अपनी तेज तर्रार भाभी पसंद है तो वह क्यों न होगी। सुना कि रूपा ने अपने सारे गहने गिरवी रख दिए थे देवर की पढ़ायी के लिए"।
"ओह तभी तो एहसान के नीचे दब गया है बेचारा"।
"तब भी क्या वह मर्द मारन ही मिली थी? भले चाल चलन की अच्छी लड़कियां मर गईं हैं क्या ? और कोई लड़की नहीं थी क्या कहीं।"
"लो अब शुरु हुई दूसरी कहानी . अब दो मर्दमारन एक ही घर में रहेंगी ! क्या होगा अब उस घर के मर्दों का ?"
और दुखंता फुआ की पंचायत में बैठी औरतें घूंघट से घूंघट सटाकर खिस्स खिस्स हंस पड़ीं।
"पागल हो ? उसकी अम्मा भी तो वह
"उसकी अम्मा जोर से चिल्लाई कि
ऐसा भी नहीं था। एक दिन फ
उसके बाद फकीरे रूपा क
"एक कंटाप लगाओ उसको, तुमसे न
"जब जरूरत होगी बुला लेंगे"।
रूपा की अम्मा से रूपा के बारे
रूपा अपने देवर का ब्याह कर रह
"जानती हो लड़की कौन है ? सबने अपनी भौहें ऊंची की - " नहीं तो "
"अरे वही जिसने बीच चौराहे पर
"अरे वही मर्द मारन जो अरियात
"उसकी तो फ़ोटो भी अखबार में आयी
"कैसे पत्रकार लोगों ने घेर लि
"रूपा को अपनी देवरानी के लिए व
"और देवर कैसा है जो तैयार है
"
"ओह तभी तो एहसान के नीचे दब ग
"तब भी क्या वह मर्द मारन ही म
"लो अब शुरु हुई दूसरी कहानी . अब दो मर्दमारन एक ही घर में
और दुखंता फुआ की पंचायत में
जैसे बहुत सी बातों को जानना कठिन होता है उसी तरह उस समय यह जानना मुश्किल था कि इस तरह मिलकर वे सब एक साथ हंस रहीं थीं या एक साथ रो रहीं थीं ।
प्रज्ञा पाण्डेय
9532969797
9532969797
तक